Friday 18 March 2016

बसंत


बसंत तुम कब आओगे?
..इस बार भी तुम हर बार की तरह झूमते हुये ही आना,जैसे तुम आया करते थे,मेरे बचपन में,मेरे गाँव,मेरे शहर में. मुझे आज भी याद है,जब सरसों को सुर्ख पीला दुप्पट्टा ओढ़ाते थे और वन वृक्षों पर गाड़ा हरा रंग छिड़क देते थे और धरती जैसे मुल्तानी लेप लगाये तुम्हारे इंतज़ार में सुनहरी हो जाती। तब छोटे बड़े पेड़ों को छूकर गुजरती हवाओं में हरियाली हंसी गूँजा करती थीे..इस बार भी हर बार की तरह खुशियों वाली वो रंग बिरंगी टोकरी संग लाना मत भूलना ।बचपन के दिनों में कितना इंतज़ार रहता था तुम्हारा,
तुम्हारे आने पर जंगल में घूमने में बड़ा मजा आता था, फलदार पेड़ों की टहनियो से फल तोड़ कर खाने में अपना अलग ही आनंद है तुम तो जानते ही हो न। होली के मनभावन गीत तुम्हारे आने की खबर तो दे ही रहे हैं ,बस अब तुम जल्दी आ ही जाओ। पता है, दादी बहुत डांटती थी कहती थी,इन दिनों में बाल खुले कर, सेंट परफ्यूम लगा या मेकअप कर क न घूमा करो वरना परी उठा ले जाएँगी। और कितना सताया था मैंने तुम्हें की परियों का पता बताओ। तुम भी तो हठी थे न, नही बताया।
वैसे तो मैं जानती हूँ शहर की छोटी छोटी क्यारियों में और गमलो में तुम तो वादियों में जंगलों में बसर करते हो वहीँ मुस्कुरातेेँ वहीँ गुनगुनाते फिरते हो,तो चलेंगे इस बार, हम भी जहां धरती मुस्कुराती है फूलों का चेहरा लेकर।
चलो अब जल्दी आओ, इस बार तुम्हें परियों का पता बताना ही होगा मुझे भी देखना है क्या सच में खुले बालों वाली लड़की को परी उठा ले जाएगी, यों तो अब मैं बड़ी हो गयी हूँ पर बसंत के आने पर फिर से बच्चा बन जाने को जी हो आता है, फिर से जंगल में बेमतलब बेटेम आवारा घूमनेे को मिल जाये ,फिर से लदी टहनियों से तोड़ कर फल खानेे को मिल जाए, तो बात ही क्या!
….इंतज़ार….!!
©shailla’z diary

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