Monday 17 August 2015

Mera Shahar

मेरा शहर बुलंदशहर,
जो शहर होकर भी शहर सा न रहा
ये जिंदगी का एक पड़ाव सा था
जहां जीवन ठहरा रहा,
एक बेचैन हवा की तरह
जो बहती है, कभी ठहर सी जाती है
आगे बड़ते-बड़ते कहीं मुड़ सी जाती है
ये हजार गली चैबारों का शहर
कहीं मिलती हैं तो कहीं बिछड़ी सी रहतीं हैं
कभी कहीं गुमनाम अंधेरों में गुम सी।
वो शहर,
जहां कंकड़ कंकड़ में शिव हैं रमते
सुबह की अजान में कबीर हैं बसते
शाम के दोहे रवि हैं रचते
जहां कोने कोने कृष्ण के जश्न हैं मनते
और, मीरा के गीत हैं गुंजते।
इतिहास से जुडाव रखने वाला मेरा ये शहर
गवाह है आम-ए-कत्लों का,जिसने
मौत का मातम नहीं खुशियां मनाई ।
मेरा शहर, शहर नहीं
ये बातों का बंतगड है
एक जीवन रेखा है, जहां आप का स्वागत है ।।

©shailla'z diary

Saturday 15 August 2015

2015-Independence Day-Very Wishes!!

-69स्वतंत्रता दिवस की अनेक अनेक बधाईयाँ...॥

सुना  था कभी...
आज ही के दिन आज़ाद हुआ भारत देश
आज़ाद हुए थे हम।
गुलामी छुटी,हुआ नवयुग का निर्माण,
पर कैसी आज़ादी, कैसा नवयुग निर्माण?
अंग्रेज तो चले गए,मगर
भारत-राज के टुकड़े कर गए
एक टुकड़ा अलग हो गया
नाम पाकिस्तान हो गया
गुंज तो रही खुशियां, मगर
फिर भी सिसक रहा देश
रक्तपात-कत्लेआम से
घायल, रो रही धरती
तो बोलो कैसी आज़ादी
कैसा आज़ाद  देश।
बंटवारे की आफत में
रिश्ते-नाते-यारे
सब हो गए न्यारे
आतंकवाद और भ्रष्टाचार का
बोलबाला है चार दिशायें
नक्सलियों ने किया छलनी सीना
तो बोलो कैसी आज़ादी
कैसा आज़ाद देश।
दे गए झूठे नारे, झूठे वादे
अब ना किसी से शर्माते
कहने को आज़ाद ,मगर
ख्यालातों से गुलाम सभी
लूट जाते बेटे-बेटियां
अफसोस करते रह जाते हम
ज्ञान हमारा, मान हमारा
बिक रहा बाजारों में 
कठपुतली से बने रह गए
हुए इतने लाचार सभी
तो बोलो कैसी आज़ादी
कैसे आज़ाद हम।।

©shailla'z diary