Wednesday 6 January 2016

सीख और चाय


आज मैं सोच रही थी कुछ सिखने के बारे में..वो क्या है की सीखते तो सभी हैं बस लोगों के सिखने का तरीका अलग होता है, कुछ सुन कर सीखते हैं तो कुछ पढ़ कर सीखते हैं, कुछ सीखते हैं फिल्मों से तो कुछ गूगल से, कुछ लोग सीखते हैं आसपास देख कर तो कुछ लोग सिर्फ अपने आप से ही बहुत कुछ सीख लेते हैं।
मेरा क्या तरीका है मैं नही जानती, कैसे सीखती हूँ मैं?, अब तक नहीं समझ पायी। शायद ये सभी तरीके मेरे भी थे।
कहते तो ये भी हैं जिन्दगी में इंसान मुसीबतों से भी बहुत कुछ सीखता है, इश्क भी बहुत कुछ सिखा जाता है अपने तरीकों से।
तो अब तक जाना तो ये भी है  कि जिंदगी चाहे किसी की भी हो सीखती तो इश्क से भी है, हर बार  जब भी किसी मतवाले से मुलाकात हो, समझो अब मुसीबतों से भी मुलाकात होगी और जब भी इस मुसीबत से सामना होता है तो जिंदगी अलग रंग में नजर आती है फिर सब कुछ बदल जाता है। हमारी पसंद नापसंद सब। हर बार कुछ नया सा कर जाता है और हम खुद को पहले से ज्यादा सुलझा हुआ सा महसूस करते हैं।
इश्क में होने पर महबूब की सारी चीज़ें अच्छी लगती हैं , उसकी पसंद की सारी चीजें हम करना चाहते हैं, उसके शौक़ हमारे शौक बनते जाते हैं और हमें पता भी  नहीं चलता। उसकी पसंद की ड्रिंक्स हमारी पसंदीदा कब हुई पता ही नहीं चला । ऐसे ही बिना दुध की काली चाय बहुत पसंद थी उसे। आलम ये हुआ कि मुहब्बत में हमने काली चाय तक पीनी शुरू कर दी। बचपन से लेकर अब तक हम ने कभी  चाय नहीं पी थी।  माँ ने जो डराया हुआ था कि चाय पीने से  काले हो जाते हैं। शायद पहली बार चाय मामा के घर पर ही पी गई थी, मामी ने जबरदस्ती सर्दी ठीक हो जाने का लालच देकर पीला दी थी, वो भी कालेज के शुरूआती दिनों में  और  फिर अब।
उसने बस बताया कि उसे चाय बहुत पसंद है और हम कॉफ़ी से  बेवफाई कर हो गए चाय के मुरीद।
और सीख डाले चाय बनाने के दसियों तरीके के जैसे अदरक वाली चाय, लौंग इलायची वाली चाय, मसाला चाय, दालचीनी वाली चाय और भी न जाने क्या क्या।

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