Monday, 28 March 2016

तुम और मैं


तुम समन्दर का किनारा हो
मैं एक प्यासी लहर की तरह
तुम्हें चूमने के लिए व्याकुल हूँ
तुम तो चट्टान की तरह
वैसे ही खड़े रहते हो
मैं ही हर बार तुम्हें
छू कर बस लौट जाती हूँ।
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You are the ocean’s edge
& I’m like a thirsty wave
I’m desperate to kiss you
& you like rock
Just stand
I do the same every time
just touched you & returns.
©shailla’z diary

Thursday, 24 March 2016

छोटे छोटे सुख


होली की वो गर्म दुपहरी.. तेज़ धूप और दूर तलक हरियाली पसरी.. जैसे हरी गेंहू की चादर.. दुनिया के झंझटों से कोसो दूर.. पत्तियों की खुशबू.. मिट्टी की खुश्बू.. कुछ बसंत के फूल..अहा! ये जीवन के छोटे सुख..बड़े-बड़े शहरों से कितने पराये हैं..!!IMG_20160327_195120

Sunday, 20 March 2016

नन्ही मुस्कान


आज सामने वाली रेड लाइट पर
जैसे ही ऑटो की स्पीड थमी
दौड़ कर
चीन्नी, मीन्नीऔर टीन्नी
आ धमके तमाशा दिखाने
कभी नाच कर
तो कभी कुछ मजाकिया कह कर,
कभी एक के ऊपर एक चढे़
तो कभी, छोटे से गोले से निकले,
कभी लगे कोशिश करने
इस छोटे से गोले में साथ घुसने की,
तरकीब और तमाशा
अजब गजब निराला ढ़ंग,
लोग ताली बजाते
मन ही मन मुस्कुराते
प्रशंसा करते
अच्छा तो था ही,
पर ये क्या
तमाशा तो सबने देखा
न देखा वो दर्द
उस छोटे से बच्चे के चेहरे पर
जो निकल रहा था उस छोटे से गोले से
बार बार, साथ साथ!
अब बारी थी
रुपया मांगने की
रेड लाइट ऑन हो गई
और, बच्चे के चेहरे पर जो
मुस्कुराहट थी, हंसी थी
एका एक गायब हो गई
किमत भी क्या थी उस नन्ही सी मुस्कान की
मात्र कुछ रुपए
जो उन तमाशबीनों के लिए बड़ी रकम न थी
पर फिर भी
नन्ही मुस्कुराहट बरकरार न रह पाई।
©shailla’z diary

Friday, 18 March 2016

बसंत


बसंत तुम कब आओगे?
..इस बार भी तुम हर बार की तरह झूमते हुये ही आना,जैसे तुम आया करते थे,मेरे बचपन में,मेरे गाँव,मेरे शहर में. मुझे आज भी याद है,जब सरसों को सुर्ख पीला दुप्पट्टा ओढ़ाते थे और वन वृक्षों पर गाड़ा हरा रंग छिड़क देते थे और धरती जैसे मुल्तानी लेप लगाये तुम्हारे इंतज़ार में सुनहरी हो जाती। तब छोटे बड़े पेड़ों को छूकर गुजरती हवाओं में हरियाली हंसी गूँजा करती थीे..इस बार भी हर बार की तरह खुशियों वाली वो रंग बिरंगी टोकरी संग लाना मत भूलना ।बचपन के दिनों में कितना इंतज़ार रहता था तुम्हारा,
तुम्हारे आने पर जंगल में घूमने में बड़ा मजा आता था, फलदार पेड़ों की टहनियो से फल तोड़ कर खाने में अपना अलग ही आनंद है तुम तो जानते ही हो न। होली के मनभावन गीत तुम्हारे आने की खबर तो दे ही रहे हैं ,बस अब तुम जल्दी आ ही जाओ। पता है, दादी बहुत डांटती थी कहती थी,इन दिनों में बाल खुले कर, सेंट परफ्यूम लगा या मेकअप कर क न घूमा करो वरना परी उठा ले जाएँगी। और कितना सताया था मैंने तुम्हें की परियों का पता बताओ। तुम भी तो हठी थे न, नही बताया।
वैसे तो मैं जानती हूँ शहर की छोटी छोटी क्यारियों में और गमलो में तुम तो वादियों में जंगलों में बसर करते हो वहीँ मुस्कुरातेेँ वहीँ गुनगुनाते फिरते हो,तो चलेंगे इस बार, हम भी जहां धरती मुस्कुराती है फूलों का चेहरा लेकर।
चलो अब जल्दी आओ, इस बार तुम्हें परियों का पता बताना ही होगा मुझे भी देखना है क्या सच में खुले बालों वाली लड़की को परी उठा ले जाएगी, यों तो अब मैं बड़ी हो गयी हूँ पर बसंत के आने पर फिर से बच्चा बन जाने को जी हो आता है, फिर से जंगल में बेमतलब बेटेम आवारा घूमनेे को मिल जाये ,फिर से लदी टहनियों से तोड़ कर फल खानेे को मिल जाए, तो बात ही क्या!
….इंतज़ार….!!
©shailla’z diary

Saturday, 5 March 2016

सर्दी की पहली बारिश


सर्दी की बारिश से कहीं भागी है धुप
रूठी नहीं बस बागी है धुप
ठिठुरता तन
मन भी कंपता सा
सूरज से हमने थोड़ी मांगी है धुप
तेरे ख्यालों की धुप भी
बिखरी है यहाँ वहाँ
यादों की रस्सी पे जैसे टांगी हो धुप
आंचल में मैंने समेटने की
कोशिश तो की
देखो कैसी
प्यारी दुलारी है धुप
अदरक की चाय किस इ महकी
अलसाई सी अंगडाई लेती
देखो अभी अभी
जागी है धुप
लिपटी है तन से
मन भी महका सा है
प्रीतम सी अब मोसे लागी है धुप!
©shailla’z diary

Wednesday, 2 March 2016

माँ की याद-1


आज माँ बहुत याद आ रही है यह उसके दुनिया से रुखसत लेने का महीना जो है। जब भी सोचती हूँ उसके बारे में तो न जाने क्या क्या आँखों के आगे दौड़ने लगता है। उसका हंसना..उसकी मुस्कान.. परेशान करने पर मारने दौड़ना..शैतानी ज्यादा करने पैर मुझे मुर्गा बना देना..फिर रूठ जाओ तो खूब दुलारना..गलती करने पर समझाना.. और खूब डूब कर स्वादिष्ट पकवान बनाना।
मीठे की बड़ी शौकीन थी मेरी माँ..घर को सजा की शौकीन..कढ़ाई बुनाई रंगाई की अच्छी समझ रखने वाली औरत थी मेरी माँ।
सालों साल जरुरत मंदों की जरूरतें पूरी करती रही और अपने लिए न जाने कौन सी ख़ुशी कमाती रही।
आज उसके सभी गुणों को साथ याद कर रही हूँ इस कामना के सतग कि किसी भी माँ को कभी वो दर्द न सहना पड़े जो मेरी माँ को सहना पड़ा।।
आमीन
©shailla’z diary

Tuesday, 1 March 2016

चाँद

अटरिया पर चढ़ कर चाँद कुछ यूँ बैठा है जैसे उतरना ही न हो उतरना तो होगा ही देखना कल सुबह नदारद होगा और अगली रात से थोड़ा थोड़ा कटा मिलेगा जैसे अटरिया पर चढ़ने भर की किस्ते चुका रहा हो।।   ©shailla’z diary