Wednesday, 23 December 2015

बहुत दिनों बाद..

आज बहुत दिनों के बाद कुछ कहने को जी कर रहा है
आज बहुत दिनों के बाद अपना कुछ सुनाने का जी कर रहा है
कुछ कहा- अनकहा
कुछ सुना- अनसुना
कुछ ऐसे लफ़्ज दिल से निकल कर दिल को छू जाएँ
कुछ अल्फ़ाज जो रूह में समा जायें
आज फिर बहुत दिनों के बाद
अपना लिखा पढ़ लेने का जी कर रहा है
मेरी बेपरवाह तमन्ना कह रही है खुद से
आओ सुनो मेरी बेपरवाह आरजू
ऊँची उडान भरने की है इसकी जुस्तजू
एक अरसे बाद जैसे मेरी आरजू को पंख मिले हैं
यूँ तो अल्फ़ाज बहुत हैं
किस्से बहुत हैं
शायद शब्द कम पड़ जाएँ
शायद वक्त कम पड़ जाएँ
पर फिर भी आज
अपने मन के द्वार खोलने का जी कर रहा है।।।
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Today, after a long time is to beet alive,
Today, after a while time is to tell something,
something said-unsaid,
Those words will touch heart out of the heart,
A few chosen words that penetrate into the spirit.
Today, after so many days again,
I want to read some self-written,
Regardless of my desire saying to me,
Come & listen my heedless wishes.
Its like, I want to fly high,
Coz, after a while I got my wings.
Like words are alot,
Stories alot,
Perhaps the words may fall short,
Perhaps time will be less,
Still today,
I want to open the doors of my heart...!!!
©Shailla'z Diary

आसान,मगर कठिन

बहुत आसान सी है लिखावट
मगर कठिन हैं लिखना
क्या और कितना समझा
मुश्किल सा हैं समझना
इन्तहा तक महसूस किया
फिर भी मगर
कुछ छुट सा गया
क्या कुछ कहा
क्या बचा रह गया
तुमने हंसा
हम हँसते रहे
खेले कूदे
नाचे गाये
पल पल जिए दिन और रात
बहुत कुछ लिखा
बहुत कुछ कहा
कितना कुछ रह गया
अनकहा सा
जिसे शब्दों में हम पिरो न सके।।
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So easily written
Difficult to write
So much I have understand
Still difficult to understand
So much I feel
How much I left to felt
So much we said
Still left something to say
You laughed
We laugh
We play and play
We cherished the day & night
So much to write
So much to say
So much to miss
But no enough words to fix.

©shailla'z Diary

Time Matters

Life has changed so much in the past two decades, there are so many things that have made our lives convenient as compared to the generation before us. There are washing machines, dish washers, smart phones, ebooks, online music libraries and the list go on.
Every Sunday have evolves. As a kid, Sunday meant funday, getting up early and getting ready in time to catch the morning 9.00am Disney cartoons on Doordarshan. Those 2-3 hours were precious and wouldn't do anything other than watch the cartoons on play. After all, this was the only time in the week we got to watch cartoons and if for any reason, be it homework or visiting relatives etc., a sacrifice was required to be made of these hours then it would be heartbreaking. It's a completely different story now.
And now, I watch all my favorite shows online at a time of my choice. With a high speed internet connection and content platforms, now I have that flexibility. There is a complete freedom to choose what I want to watch, when,where and how much I want to watch at particular time. Now no longer required to adjust my schedule to catch my shows.
Thanks to the new age of digital media I am able to do this without having to compromise on anything, which is definitely a better way of consuming content.
Being a working professional it is very important to have flexibility in life. One needs to adjust and adapt to the needs and requirements of the work, office and home.
It is important to constantly educate oneself to realize the significance of why a change needs to be accepted. Let's educate and bring in the new..!!
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पिछले दो दशकों में बहुत कुछ बदल गया है, ऐसी बहुत सी चीजें  हैं जिनकी वजह से हमारी पीढ़ी को काफी सुविधाजनक बना दिया है पिछ्ली पीढ़ी की तुलना में। अब हमारे पास कपड़े धोने की अलग मशीन है, बर्तन धोने की अलग, वैसे ही मनोरंजन के ढेरों साधन- स्मार्ट फ़ोन हैं, यहाँ तक की आप ऑनलाइन गानें सुन सकते हैं किताबें पढ़ सकते हैं। सूची बहुत लम्बी है।
अगर बात सिर्फ एक दिन "रविवार" की की जाये तो वो भी बहुत बदला हैं। जब मैं छोटी बच्ची थी, तब सन्डे का मतलब मनोरंजन दिवस होता था बहुत हंगामा जो चाहो काटने की आजादी मिल जाया करती थी और कोई पढाई करने को भी नहीं बोलता था।
सुबह सवेरे जल्दी उठ कर नह धो कर जल्दी नाश्ता कर बात जाया करते थे TV क सामने, अरे भाई ! सवेरे 9 बजे से Disney cartoon जो देखना होता था दूरदर्शन चैनल पर। वो 2-3 घंटे बहुत कीमती हुआ करते थे, उस वक्त कोई मेहमान घर न आये या माँ कोई काम न बता दे यही सोचते सोचते टीवी देखा करते थे।  और हो भी क्यों न यही तो बस एक दिन मिलता था जब अपनी मन अनुसार टीवी देख सकते थे या जो मन चाहे कर सकते थे। एक अलग ही कहानी थी ये भी बचपन की।
और अब, हम कुछ भी जो चाहें ऑनलाइन देख सकते हैं, बहुत से उच्च गति के इन्टरनेट कनेक्शन और सामग्री प्लेटफोर्म उपलब्ध जो हैं अब। विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है जनाब।
मैं भी अपने मन चाहे प्रोग्राम ऑनलाइन देखती हूँ जब जी चाहे तब और जितना जी उतना, अपनी इच्छानुसार। पूरी आजादी है जो चाहे चुनो, जितना चाहे देखो, जब मन करे तब देखो। आजकल कोई जरुरत ही नहीं है अपनी अनुसूची को समायोजित करने की या ना देख पाने का दुःख मानाने की।
धन्यवाद है इस नए युग के डिजिटल मिडिया को, जिसकी वजह से इतना सब कुछ आसान बन पाया है। यह एक निश्तिंत रूप से उपभोक्ता सामग्री का एक बेहतर तरीका है जिसकी वजह से आज हम बिना समझोता किये अपनी पसंद के टीवी प्रोग्राम देखने में सक्षम हैं।
यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि काम कर रहे पेशावर लोगों के जीवन में लचीलापन है। सभी के लिए  जरूरी है कि वो काम,  दफ्तर  और घर के अनुकूल अपनी जरूरतों को समायोजित करे।
सभी को लगातार परिवर्तन स्वीकार करने की भी जरूरत है और इसके लिए खुद को लगातार शिझित करते रहना भी महत्वपूर्ण होगा। चलो शिझित बने और बनाए।  नया अपनाएं।।
©Shailla'z Diary

Monday, 17 August 2015

Mera Shahar

मेरा शहर बुलंदशहर,
जो शहर होकर भी शहर सा न रहा
ये जिंदगी का एक पड़ाव सा था
जहां जीवन ठहरा रहा,
एक बेचैन हवा की तरह
जो बहती है, कभी ठहर सी जाती है
आगे बड़ते-बड़ते कहीं मुड़ सी जाती है
ये हजार गली चैबारों का शहर
कहीं मिलती हैं तो कहीं बिछड़ी सी रहतीं हैं
कभी कहीं गुमनाम अंधेरों में गुम सी।
वो शहर,
जहां कंकड़ कंकड़ में शिव हैं रमते
सुबह की अजान में कबीर हैं बसते
शाम के दोहे रवि हैं रचते
जहां कोने कोने कृष्ण के जश्न हैं मनते
और, मीरा के गीत हैं गुंजते।
इतिहास से जुडाव रखने वाला मेरा ये शहर
गवाह है आम-ए-कत्लों का,जिसने
मौत का मातम नहीं खुशियां मनाई ।
मेरा शहर, शहर नहीं
ये बातों का बंतगड है
एक जीवन रेखा है, जहां आप का स्वागत है ।।

©shailla'z diary

Saturday, 15 August 2015

2015-Independence Day-Very Wishes!!

-69स्वतंत्रता दिवस की अनेक अनेक बधाईयाँ...॥

सुना  था कभी...
आज ही के दिन आज़ाद हुआ भारत देश
आज़ाद हुए थे हम।
गुलामी छुटी,हुआ नवयुग का निर्माण,
पर कैसी आज़ादी, कैसा नवयुग निर्माण?
अंग्रेज तो चले गए,मगर
भारत-राज के टुकड़े कर गए
एक टुकड़ा अलग हो गया
नाम पाकिस्तान हो गया
गुंज तो रही खुशियां, मगर
फिर भी सिसक रहा देश
रक्तपात-कत्लेआम से
घायल, रो रही धरती
तो बोलो कैसी आज़ादी
कैसा आज़ाद  देश।
बंटवारे की आफत में
रिश्ते-नाते-यारे
सब हो गए न्यारे
आतंकवाद और भ्रष्टाचार का
बोलबाला है चार दिशायें
नक्सलियों ने किया छलनी सीना
तो बोलो कैसी आज़ादी
कैसा आज़ाद देश।
दे गए झूठे नारे, झूठे वादे
अब ना किसी से शर्माते
कहने को आज़ाद ,मगर
ख्यालातों से गुलाम सभी
लूट जाते बेटे-बेटियां
अफसोस करते रह जाते हम
ज्ञान हमारा, मान हमारा
बिक रहा बाजारों में 
कठपुतली से बने रह गए
हुए इतने लाचार सभी
तो बोलो कैसी आज़ादी
कैसे आज़ाद हम।।

©shailla'z diary

Monday, 27 July 2015

Kalam Ko Salaam


(This is my first hindi post as a homage to Mr. Kalam, coincidently when I logged in after a longtime my blog asked me to write something in hindi ..lol)
11th President of India Dr. ‪#‎APJ‬ ‪#‎Abdul‬ ‪#‎Kalam‬ and Great ‪#‎Indian‬ ‪#‎Scientist‬ (Missile Man) Passed Away!

#‎कलामकोसलाम‬  ‪#‎restinpeace‬
रामेश्वरम् में जन्मा, बंदा खुदा का था वो,
स्वप्नदर्शी, दूरदर्शी, चलता रहा डगर वो,
कभी जा खेला DRDO-ISRO में,
कभी हेलीकॉप्टरों को,तो कभी रोकेटों को
बना डाला खिलौना,
पहुँचा पोकरण में,जा झंडा लहराया,
'भारत रत्न' ने नवाज़ा,तो-
'Missile Man' लोगो ने कह डाला,
ना मुश्किलों का भय, ना नाउम्मीदियों का डर,
अरबों की आवाज बन, भारत का ताज बन,
अकेला लड़ गया, अकेला बढ़ गया वो,
कविताएँ लिख गया वो,
लेख लिख गया वो,
जा,जा कर पढ़ ले,
क्या क्या छोड़ गया वो,
शिलांग में आज आ कर,
मन्द मन्द मुस्कुरा कर,
एक सफर पे था वो,
वहीं थम गया वो।।



©shailla'z diary


Thursday, 28 May 2015

Morning Thought


What better day than today for your miracle to take place. :) 

Get your heart ready because something incredible is going to happen today! ANYTHING is possible!